मैं एक मीडिया कंपनी में रिसर्च एग्ज़िक्युटिव के पद पर कार्यरत हू.. जिंदगी नित नये फ़लसफ़े सीखा जाती है.. ऐसे ही इक रोज़ एक फलसफा मिल गया.. सोचा आपके साथ बाँट लू.. नेस्बी के लिए ये मेरा पहला लेख है.. अच्छा लगा या बुरा बताएगा ज़रूर..
ह
मेरी बहन की एक सहेली है, उसके सबसे करीबी दोस्तों मे से एक..वो लड़की बहुत ही जिंदादिल, बातूनी, खुशमिजाज़ , सबको खुश रखे ऐसी है.. मुझे हमेशा से लगा की क्या बात है ऐसे भी लोग होते है जिन्हे कोई गम नही बस चिन्तामुक्त होकर जिए जा रहे है.. हमारी ज़्यादा मुलाक़ाते होती नही थी सो ज़्यादा जानती नही थी उसके बारे में.. तो एक ओपीनियन बना चुकी थी (वेरी जड्ज्मेंटल बाइ नेचर!) पर उस पल सारे ओपीनियन्स चकना चूर हो गये.. वो लड़की जो सबको खुशिया बाँट ती है, कॅन्सर से लड़ रही थी और उसे ना जीतने देने की कसम खा ली थी.. एक लड़की एक बड़े परिवार में जनम लेती है जहा बहुत सारे भाई बहनों में अपना अस्तित्व ढूँढने के लिए,माता पिता की आँखों का नूर बन ने के लिए उसे हमेशा कुछ अलग, कुछ हटके करना पड़ा..इसीलिए वो मेडिसिन में आई.. शायद डॉक्टर बनने पर उसे वो प्यार मिले जो वो चाहती है.. ऐसा नही की उसके घर वाले खराब थे.. बस जो प्यार उसके सीने में है सब के लिए, उसका फीडबॅक नही मिल पाया था वहा :-)
कॉलेज मे उसने दोस्त बनाए तो दुश्मन भी (पॅशनेट पीपल ऑल्वेज़ मेक एनिमीस एस वेल!) जिनको उनका प्यार मिला कभी भूल नही पाएँगे उसे और जिन्होने दुश्मनी निभाई कभी भूलना नही चाहेंगे उसे :-) जहा जाती वहा खुशी और अपनापन फैलाती फिर वो स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस के पॅसेंजर्स या मेडिकल कॅंप मे मिले पेशेंट्स.. वो भी बहुत खुश थी की आख़िर उसे चाहिए था जैसा वैसा ही हो रहा था.
जैसे हम चाहते है गर वो हो रहा हो तो समझिए कुछ बुरा होने वाला है.. वैसा ही कुछ उसके साथ हुआ. थायराइड कॅन्सर डिटेक्ट हुआ.. बार बार ट्रीटमेंट के लिए टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई के चक्कर लगने लगे..उतना काफ़ी नही था की डॉक्टर्स ने कहा थायराइड ग्लॅंड निकालना ही पड़ेगा वरना अच्छा ना होगा..वो भी कर लिया उसने..इन सब के बीच, कॉलेज अटेंड करना, हसी मज़ाक करना, एम्.बी.बी.एस. के एग्ज़ॅम्स देना और पास करना भी कर लेती थी..
जब ये सारी बाते पता चली मुझे, एक अजीब सी खुशी एक अजीब सी शर्म महसूस हुई.. खुशी इसलिए की वो लड़की अपना गम छुपाने के लिए हसती नही बलकि इसलिए क्यूं की उसे सच मे लगता है ज़िंदगी एक बार ही मिलती है उसे जितनी खुशी से जिया जाए वो और ज़्यादा खूबसूरत हो जाती है.. सेल्फ़ पिटी मे जीने के लिए अपने आप पर शर्म आई और सोचा की जब भगवान ने एक दूसरी ज़िंदगी दी है तो इसका कोई कारण होगा, शायद वो मुझे दुनिया को और खूबसूरत बनाने के लिए और प्यार बाटने के लिए कह रहा है.. तो बस हमने भी खुशिया बाँटने का कांट्रॅक्ट कर लिया है उपर वाले से और पूरी कोशिश करते है.. जब भी निराशा नज़र आती है.. उस लड़की को याद कर लेते है और फिर जीना शुरू कर देते है :-)शायद ऐसे ही लोगो को नेस्बी कहा जाता है..
कुछ दिन पहले मेरी बहन उस सहेली से बात कर रही थी, उसने कह दिया के तूने सई को इतना प्रभावित किया के वो तुझपर कुछ लिखना चाहती है.. वो बोली अरे क्या कहती हो मैने तो सई से ही प्रेरणा ली है! जब लोग अपने आस पास के लोगो से प्रेरणा लेने लगे..ज़िंदगी कितनी खूबसूरत हो जाती है ॥ है ना?
21 टिप्पणियाँ:
sabse pahle to sai ko badhai ... tin din se tumhari post ka wait kar rahi thi...
jindgmein kaun kab kise kaise jina sikha jaye... pata nahi .... :) ...aur kamal ki baat to ye hai ki aise log bilkul usi wakt milte hai jab lagta hai sare raaste bandh hai ... aur kuch nahi ho sakta.... shayad isi ko roshni ki pahli kiran kahte hai....
jinke pas jindagi kaam ho we hi ise nemat samjh kar jee pate hain...sundar lekh sai jee..badhayi
खूब कहा.... मेरा एक दोस्त कहता है कि आप जैसे होते हैं दुनिया आपको वैसी ही लगती है
ज़िन्दगी छोटी सी है और किसी की प्रेरणा उसको जीने लायक बना देती है ..अच्छा प्रेरणा देता हुआ लेख लिखा है आपने .
प्रेरणादायी आलेख, धन्यवाद। जो खुद अच्छे होते हैं, उन्हें ही दूसरों की अच्छाई भी नजर आती है।
khubsurat lekh...aur ye padh ke laga ki 'anand' jaisi kahani keval filmo mein nahi hoti...haqikat bhi ho sakti hain...
सचमुच हमारे आसपास ही अक्सर ऐसे लोग हमें मिल जाते हैं जो जाने अनजाने हमें जीना सिखा जाते हैं... आप भी उन्ही लोगों में से हैं जिन्हें पढ़कर हमेशा प्रेरणा मिलती है और ख़ुशी होती है!
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तारीफ़ के लायक .. नज़ीर
सुन्दर लिखा है.
सुन्दर,प्रेरणा देता हुआ लेख
अच्छी तस्वीर खीँची है आपने आपके आलेख मेँ --
sai hamesha bahut acchha likhti hai:)khud bhi nesbi si hai
प्रेरणादायी आलेख... बहुत आभार
"कुछ यूँ रिश्ता रहा मुश्किलों से
कि हौसलों से मुहब्बत सी हो गई "
एक प्रेरणा से भरे लेख के लिए शुक्रिया ....मैंने ऐसा ही एक मंजर अपनी आँखों के सामने देखा है ...अपनी बहन की दोस्त को मेरा सलाम कहना .....ओर ढेर सारा स्नेह भी देना ..अपनी बहन से कहना वो किस्मत वाली है उसे ऐसे दोस्त मिले है.....
बहोत खुब।
सही में ये एक प्ररेणा देना वाला लेख हैं। लोगो का हौसंला देख खुद में भी हौसंला आता हैं। जिदंगी में जिसने हौसंला रख लिया वो जीत गया। इसलिए उनको हमारा सलाम।
बहुत सुन्दर लेख, धन्यवाद
sabhi vachako ko mera aabhar..
hauslaafzai ke le liye shukriya..
बेहतरीन, प्रेरणादायी पोस्ट!
बहुत प्रेरक, बधाई!
नेस्बी, एक खुशनुमा एहसास
आइए आज ऐसे ब्लॉग की बात करें जहां न तो ब्लागर का बखानों से भरा प्रोफाइल है, ना दंभ, ना आडम्बर और ना अनावश्यक बौद्धिकता. ये ब्लाग धीरे धीरे बहती निर्मल शांत नदी की तरह है जिसके किनारे की बयार में कहीं रात की रानी की महक है तो कहीं वनचम्पा की खुशबू. चलते हैं नेस्बी के किनारे. नेस्बी यानी सृजनशीलता का ऐसा दरिया जो आपको ताजगी का अहसास कराता है, संघर्ष के लिए प्र्रेरित करता है और पॉजिटिवटी से भर देता है. यह ब्लॉग महिलाओं के सम्मान, उनके अधिकार, उनकी संवेदनाओं, उनके वजूद की दास्तान है. यह ब्लॉग हर उस महिला के लिए है जिसे नारी होने पर गर्व है.
सही मायने में नेस्बी जिंदगी का एक ऐसा कैनवास है जिसमें आपनी अपनी पसंद के रंगों को भर सकते हैं. इसमें जिंदगी में उतार-चढ़ाव के इंद्रधनुषी रंग हैं.
इसमें पारुल की नानी मधुरा के रूप में उनकी नेस्बी के संघर्ष, अस्मिता और जीवन दर्शन का सारांश है तो मीता सोनी की पोस्ट 'उसकी शादीÓ में ऐसे संस्मरण हैंं जिसमें दहेज के दंश को झेलती नारी की टीस है तो मेल डॉमिनेटेड सोयायटी में पुरुष की लाचारी पर तीखा कटाक्ष भी. उन्नति शर्मा ने 'स्त्रियोचितÓ शीर्षक से अपनी पोस्ट में स्त्री होने के मायने और संबंधों की आर्टिफिशियलिटी पर सवाल उठाए हैं. नेस्बी में सिद्धहस्त लेखिकाओं के बीच श्रद्धा जैन जैसी डिब्यूटेंट ब्लॉगर भी हैं जिन्होंने 'हां, मैं पास हो गईÓ षीर्षक से अपनी पहली पोस्ट लिखी है. इसमें बाल मनोविज्ञान को समझने में एक महिला, एक टीचर की सेंसिटिविटी को इतने सहज और सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली रचना है.
इसके बाद की दो ब्लॉगर भी डिब्यूटेंट हैं. एक हैं पल्लवी त्रिवेदी और दूसरी हैं सई करोगल. पल्लवी मध्य प्रदेश पुलिस सेवा की अधिकारी हैं. सेल्फांफिडेंस और डिटरमिनेशन की मिसाल. पुलिस सर्विस की सपाट सख्त और कड़वी सच्चाइयों के बीच गजब का सेंस आफ ह्यूमर. उनके ब्लॉग 'कुछ अहसासÓ में उनकी पोस्ट 'साहब... एक शेर पकड़ा है वो भी गूंगा बहराÓ में इसे महसूस किया जा सकता है. सई करोगल की पोस्ट में जिंदगी के उतार-चढ़ाव और संघर्षों के बीच गजब की पाजिटिविटी है. इसी तरह मीता की पोस्ट में डॉल से दुुल्हन बनती नारी की खूबसूरत सी कहानी है. तो आइये संडे की सुबह http://nesbee.blogspot.com/ पर नेस्बी के साथ शुरू करें. दिन की इससे बेहतर शुरूआत और क्या हो सकती है.
- राजीव ओझा
Also see http://inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=6/14/2009&editioncode=2&pageno=18
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