शनिवार, 30 अगस्त 2008

नेस्बी के लिए मेरा पहला लेख - पल्लवी त्रिवेदी

पल्लवी त्रिवेदी,
भोपाल म.प्र.


प्र पुलिस विभाग में डी एस पी के पद पर कार्यरत हु.. कभी सोचा भी नही था की ज़िन्दगी कुछ यू करवट लेगी.. ज़िन्दगी के कुछ खट्टे मीठे अनुभव बाँट रही हु आपके साथ.. नेस्बी के लिए मेरा पहला लेख है.. कैसा लगा बताइयेगा
सब लोग मुझसे कहते हैं कि डी.एस.पी. बनना मेरी एक उपलब्धि है! लेकिन मेरा मानना है कि उससे भी बड़ी उपलब्धि है डी.एस. पी. बनने के बाद पूरे व्यक्तित्त्व में एक सकारात्मक परिवर्तन आना! इस पद पर आने के लिए सिर्फ पढाई की ज़रूरत थी और कुछ नहीं! लेकिन असली चैलेन्ज तो इसके बाद शुरू हुआ! आज मैं बताना चाहूंगी कि किस तरह आत्मविश्वास, मुसीबतों को सहजता से लेना, शारीरिक और मानसिक रूप से ताकतवर बनना और संवेदनशील बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई जो आज भी जारी है!

मुझे याद है वो पहला दिन अकादमी का ...जब पहली बार मैं अपना बैग लेकर अजनबियों के बीच ट्रेनिंग के लिए पहुंची थी! लड़कियों से तो पहले ही दिन दोस्ती हो गयी थी लेकिन लड़कों ने अपने व्यवहार से परोक्ष रूप से जताना शुरू कर दिया था कि बन तो गयी हो डी.एस.पी. लेकिन ट्रेनिंग करना इतना आसान नहीं है लड़कियों के लिए! सच कहूं तो शुरू में थोडा डर भी लगा कि कहीं सचमुच कठिन ट्रेनिंग कर भी पाउंगी या नहीं! पहले कभी स्पोर्ट्स भी ज्यादा नहीं रहा, ही एन.सी.सी. किया था कभी! पहले दिन हम सभी ग्राउंड पर पहुंचे! उस्ताद ने ग्राउंड के पांच चक्कर लगाने को कहा...दौड़ने भागने की आदत ही नहीं थी! उसके बाद पी.टी. फिर ड्रिल अभ्यास...शाम को फिर परेड फिर स्पोर्ट्स! शाम होते होते हालत खराब हो चुकी थी! शरीर में दर्द के मारे बुरा हाल था! लेकिन सुकून की बात ये थी कि लड़कियों का ही नहीं लड़कों का भी यही हाल था! एक सप्ताह में ही शरीर को इन सब चीज़ों की आदत हो गयी! अब तक उस्ताद भी थोड़े नरम हो गए थे!सुबह जब सबसे पहले ग्राउंड के पांच चक्कर लगाने पड़ते तो बड़ा तकलीफ देह होता था! लेकिन इतनी छूट मिलने लगी थी कि यदि कोई थक गया है तो बीच में से बाहर निकल सकता था! सभी लडकियां - राउंड के बाद निकल जातीं! कुछ लड़के भी निकल जाते!थक तो मैं भी बहुत जाती थी लेकिन मुझे लगता था कि मैं किसी लड़के को ये कहने का मौका नहीं दूंगी कि हम तुम लड़कियों से ज्यादा ताकतवर हैं!मैं बिना कुछ सोचे लगातार बस दौड़ती रहती! मुझे एक दिन बहुत ख़ुशी हुई जब कई महीनों के बाद एक लड़के ने मुझसे कहा कि उसे मुझसे प्रेरणा मिलती है! वह बीच में दौड़ना बंद करना चाहता है लेकिन मुझे देखकर उसे शक्ति मिलती है! उस दिन मुझे लगा कि मैं जो सन्देश देना चाहती थी वो सभी तक पहुँच गया है!

मुझे लगता है तन से ज्यादा मन की मजबूती ज़रूरी है! मैंने ठान लिया था कि मैं किसी भी एक्टिविटी से पीछे नहीं हटूंगी! इसलिए जो काम अन्य लडकियां नहीं कर पाती थीं जैसे रस्से पर चढ़ना, कंधे पर रायफल और वजनदार बैग लेकर मीलों पैदल चलना और रॉक क्लाइम्बिंग करना वगेरह मैं आसानी से कर लेती थी और मुझे आनंद भी बहुत आता था! एक बार हम सभी बालाघाट गए नक्सलाईट ट्रेनिंग के लियए! वहाँ तीन दिन की जंगल ट्रेनिंग भी थी! उसके लिए तीन दिन का सामान लेकर और वजनदार एस.एल.आर. रायफल लेकर पैदल ही चलना था! हमारे साथ जिला पुलिस से अधिकारी और जवान भी भेजे गए थे जो रास्ता बता रहे थे! जब किसी पहाड़ पर चढ़ना होता था तो अपने शरीर का वजन ही ज्यादा जान पड़ता था!ऊपर से रायफल और बैग का बोझ!हमारे कई साथी उस वक्त अपना सामान रायफल साथ आये जवानों को सौंप देते थे और खाली हाथ चलते थे!थकती मैं भी थी मगर मन में ठान चुकी थी कि सारी ट्रेनिंग बिना किसी सहारे के करनी है! इसलिए हाँफते हुए भी मैं अपना सामान अपने साथ ही रखती थी! मेरी इस बात को सभी अधिकारियों ने हमेशा सराहा! एक बार एक साथी बैचमेट ने कहा भी कि " थक गयी हो तो मुझे देदो अपना सामान" मैंने उसे जवाब दिया " तुम थक जाओ तो तुम मुझे अपना सामान दे देना" ! मुझे बहुत ख़ुशी होती है जब आज जूनियर बैच के डी.एस.पी मुझसे आकर कहते हैं कि आज भी अकादमी में उस्ताद लड़कियों को मेरा उदाहरण देते हैं.....मेरे साथ मेरी बैचमेट थी भावना , वह भी बहुत मेहनती थी!उस साल पहली बार कोई लड़की डी.एस.पी. ट्रेनिंग में प्रथम आई! वो थी भावना! दुसरे नंबर पर मैं थी!इस बार लडकियां बाजी मार ले गयीं थीं!

इसके बाद शुरू हुआ यथार्थ से सामना....यानी फील्ड में आकर काम करना! मुझे याद है जब पहली बार मैंने एक डैड बॉडी देखी थी ...उस व्यक्ति की हत्या हुई थी!मर्चुरी में रखी हुई उस लाश को देखकर मुझे चक्कर गया था और मैं चुपचाप बाहर निकल आई थी! उसके बाद मन को मजबूत किया और हर जगह जहां कोई हत्या होती थी , मैं जाने लगी! और अब तो हर तरह कि लाश चाहे वह कितनी भी सडीगली क्यों हो , देखना एक सामान्य बात हो गयी है! इस नौकरी ने आत्म विश्वास बहुत बढाया! कभी ऐसा लगा ही नहीं कि लड़का या लड़की में जरा सा भी भेद होता है!

एक और घटना मेरे दिमाग में आती है...ट्रेनिंग ख़त्म करने के बाद मेरी पहली पोस्टिंग ग्वालियर में हुई! उत्साह और जोश से मैं लबालब भरी हुई थी! पोस्टिंग के थोड़े ही दिन के भीतर मैं एक दिन थाने पर बैठी थी...तभी एक गाँव में एक गांजे का खेत होने की सूचना आई! मैं तत्काल थाना प्रभारी और - जवानों को लेकर वहाँ पहुँच गयी! वहाँ जाकर देखा तो गांजे का एक पूरा भरा हुआ खेत था...जिसमे एक झोंपडी बनी हुई थी! झोंपडी की जब तलाशी ली तो सूखे गांजे से भरा हुआ बोरा और कुछ अवैध हथियार मिले! मुलजिम भी हमारे हाथ में था और माल भी! हमारी रेड सफल हो गयी थी!ख़ुशी ख़ुशी हम अपना आगे का काम कर रहे थे...इतने में चारों और से गोलियों की आवाज़ आने लगी! दरअसल हमसे एक गलती हो गयी थी! उस झोंपडी में से एक औरत चुप चाप पीछे से निकल कर भाग गयी थी और पूरे गाँव को इकठ्ठा कर लायी! सभी गाँव वाले एकजुट होकर आये और सीधे फायरिंग शुरू कर दी! हल्का हल्का अँधेरा होना शुरू हो गया था! एकाएक चारों तरफ से गोलियों की बौछार होते देख एक पल को मैं बुरी तरह घबरा गयी! लगा की बस आज मौत आने ही वाली है!उस वक्त एक विचार ये भी आया दिमाग में की भाड़ में गया गांजा...यहाँ से जान बचाकर भागा जाये!तभी जैसे अन्दर से किसी ने धिक्कारा मुझे कि क्या इसी बल बूते पर पुलिस में नौकरी करने आई हो!मेरे मन में ख़याल आया कि मैं अगर भागी तो अपनी जान तो बचा लूंगी लेकिन अगले दिन के पेपर मेरी कायरता से रंगे होंगे! और दूसरी बात ..अगर एक बार गाँव के लोग पुलिस पर हावी हो गए तो हमेशा पुलिस पर हमला करेंगे!मैंने निश्चय किया कि मैं वहीं रहूंगी! मैंने थाना प्रभारी से कहा कि अपन भी जवाबी फायरिंग करते हैं!उसने तत्काल मुझे रोका! बोला...अगर इस अँधेरे में किसी को गोली लग गयी तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी! मैं नयी थी और वह दस साल का अनुभवी! मैंने उसकी बात मान ली!बाद में महसूस हुआ कि उसकी बात मानकर मैंने अकलमंदी की थी! बाद में मुझे लगा कि उस पल चारों और से बरसती गोलियों का मुकाबला करना मेरे अंदरूनी साहस को बढाने वाला सिद्ध हुआ! उसके बाद से अन्दर का भय मिट गया और आज बड़े से बड़े मॉब में मैं हाथ में लाठी और सर पर हेलमेट पहनकर घुस जाती हूँ!खतरा तो हर जगह है लेकिन अब सामना करने की हिम्मत गयी है!

ये तो हुई हिम्मत और आत्म विश्वास की बात...इसके बाद सबसे बड़ी चुनौती होती है! इस विभाग की बुराइयों से अपने आप को अछूता रखना! जिसमे प्रमुख हैं भ्रष्टाचार और जनता के प्रति असंवेदनशीलता! मैं नौकरी में आने के पहले हमेशा सोचती थी कि लोग कैसे रिश्वत देते और लेते होंगे? लोग कहा करते थे कि चाहो या चाहो पुलिस में बिना पैसे लिए काम नहीं चलता! मुझे इन बातों पर हमेशा आश्चर्य होता था! जब पहली बार एस.डी..पी. के रूप में स्वतंत्र पोस्टिंग मिली तो कुछ ही दिनों बाद मेरे रीडर ने झिझकते हुए मुझसे पूछा कि दारू के ठेके वाले का क्या करना है? मुझे कुछ समझ नहीं आया! तब उसने खुलासा किया कि दस हज़ार वह हर महीने देता है! साथ ही हर थाने से कितना आता है , वह भी हिसाब उसने मुझे बताया! वह एक पल था जो किसी भी पुलिस वाले के बेईमान या ईमानदार होने का निर्धारण करता है! मुझे सोचने में एक पल भी नहीं लगा! मैंने कह दिया कि आज से एक पैसा भी कहीं से नहीं लिया जायेगा! रीडर को आश्चर्य हो रहा था...शायद उसकी नज़रों में ये बेवकूफी के आलावा कुछ नहीं था!बाद में मेरे दोस्तों ने मुझे इस बात के लिए मुझे पागल भी ठहराया! पर मुझे लगता है कि ईमानदारी अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है! हमेशा से रिश्वत लेने को मैं इस रूप में देखती हूँ कि ये भीख लेने का ही दूसरा रूप है! जो अपना जीवन यापन करने में सक्षम नहीं है वही दूसरों के टुकडों पर पलता है!मुझे ख़ुशी है की मैंने ईमानदारी का रास्ता चुना!

दूसरी एक बात जो मुझे चकित करती है वो ये कि पुलिस से ये अपेक्षा क्यों की जाती है कि वह मार पीट करने वाला, गाली देने वाला और गुस्से वाला हो!मैं संवेदन शील तो पहले ही थी! लोग अक्सर कहते थे कि तुम जैसे लोगों के लिए ये डिपार्टमेंट नहीं है! अपनी संवेदनशीलता को थोडा कम करना होगा! लेकिन मैंने ठीक इसका उल्टा पाया! मुझे लगा , मुझे अपनी संवेदन शीलता बढाने की ज़रूरत है! इस विभाग के लोगों को तो अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए! क्योकी जो व्यक्ति थाने तक आता है वह सचमुच पीड़ित होता है और न्याय के साथ अच्छे व्यवहार की भी उम्मीद रखता है! मैंने कई बार महसूस किया कि किसी व्यक्ति की पूरी बात तसल्ली से सुन लेने भर से ही वह काफी रिलीफ महसूस करने लगता है!मैंने हमेशा पीड़ित व्यक्ति को इस नजरिये से सुना कि अगर मैं उसके स्थान पर होती तो किस व्यवहार की उम्मीद रखती! इस नौकरी में आने के बाद मैं लोगों की तकलीफ को ज्यादा महसूस कर पाती हूँ!

कुल मिलाकर पुलिस वालों को चाहे दुनिया कितना भी कोसे लेकिन इस नौकरी ने मेरे व्यक्तित्व को एक नया आयाम दिया है!और मेरी अच्छाइयों में इजाफा ही किया है!और इस सभी बातों का पूरा श्रेय मेरे माता पिता को जाता है जिन्होंने बचपन से ही साहस और आत्मनिर्भरता का पाठ पढाया! वरना शायद मैं भी उन्ही पुलिसवालों में से एक होती जिनकी वजह से ये विभाग बदनाम है!

अब पीछे मूड कर देखती हू तो लगता है नेस्बी भी पुलिस बन सकती है.. और सच तब बहुत खुशी होती है...

38 टिप्पणियाँ:

कुश ने कहा…

आपने साबित कर दिया की पुलिस वालो के पास भी दिल होता है.. एक बेहद संवेदनशील पोस्ट जो निश्चित ही आपकी कलम से निकल सकती थी.. बहुत बहुत बधाई...

बरेली से ने कहा…

agar aap aisa hi karti rahengi to bahut achcha karengi, yadi hamare yahan ke sirf chauthaai officers aapki tarah ho jaayen to bhrastachaar apne aap khatam ho jaayega, keep it up, pallavi ji.

Abhijit ने कहा…

bahut hi preranadayak lekh. police me aap jaise aur logo ki zaroorat hai.

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

aapki safalta men aapki soch, apka hoshala, aapki ranniti aadi sabka mila julayogdan hai.aap dusaron ke liye preranadayee hain magar koi prerana le jab.

L.Goswami ने कहा…

डेड बॉडी से याद आया ..जब एक बार मैं नक्सली विस्फोट के तुंरत बाद अख़बार वालों के साथ (तब मैं एक NGO में थी ) घटना स्थल पर गई थी मैंने पहली बार ऐसा मंजर देखा लाश तो फ़िर भी लाश चिथड़े उडे हुए थे ..हाँथ कहीं पैर कही वो भी एक दो नही पन्द्रह पुलिश कर्मिओं की ..मुझे बड़ा अजीब लगा था ...
बहारहाल आपकी जिंदगी काफी उपलब्धिओं से भरी है..भगवन आपकी उपलब्धियों की यात्रा जारी रखे.

Tarun ने कहा…

Maan gaye Ustad.....wah Pallavi. Saabit kar diya ki ladkiyan bhi sab kar sakti hain. bahut khoob


BTW, Nesbi ka kuch matlab hota hai kya?

रंजू भाटिया ने कहा…

मैं तो जी पहले ही मानती हूँ कि आप बहुत नेक संवेदनशील भावुक इंसान है ..इस पोस्ट ने मोहर लगा दी उस पर :) बहुत बेहतरीन लगी यह पोस्ट

डॉ .अनुराग ने कहा…

मुझे गर्व है की आप मेरी दोस्त है.....पल्लवी सदा ऐसे ही बनी रहना ....एक सवेंदनशील दिल ओर साहस का मिला जुला रूप....

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

मुझे लगता है तन से ज्यादा मन की मजबूती ज़रूरी है!
बिल्कुल सही.
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत.

नेस्बी...आँखों के सुकून ही नहीं,
ख़ुद को प्रूव करने और परखने के
ज़ज्बे और जुनून का भी एक जानदार
पड़ाव मालूम पड़ रहा है...शुभकामनाएँ.
============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

पल्लवी जी आप सदा ऐसे ही आगे बढ़ती रहें। व्यक्ति अंदर से मजबूत हो तो वह कहीं भी ईमानदारी से मुहँ नहीं मोड़ेगा। आप ने जो हिम्मत प्रदर्शित की है उसी हिम्मत की लोगों को जरूरत है। लोग अनुसरण करें तो सब कुछ बदल सकते हैं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

पल्लवी जी,
मेरी सच्चे मनसे ये आशा है कि आपकी पोस्ट कोई उचाधिकारी पढ रहा हो और भारत के
पुलिस के उच्चतम विभाग मेँ आप जल्द ही नियुक्त की जायेँ !
देशको आप जैसी होनहार
कर्मचारी पे गौरव है और आज के समय मेँ आपकी जरुरत भी है - भविष्य के लिये
शुभकामनाओँ व
आशिष भेज रही हूँ!
जय हिन्द !
-- लावण्या

डा. अमर कुमार ने कहा…

.


पता है, पल्लवी.. यह तारीफ़ भी एक तरह की रिश्वत में ही शुमार होती है । इसलिये आज तो मैं तुम्हें कोई रिश्वत देने से रहा...
तुमने भी तारीफ़ों के बारे में अपने नज़रिये का कोई जिक्र नहीं किया, इनसे तो बच के ही रहना ,बाबा !

पारुल "पुखराज" ने कहा…

aap sach me NESBI hain...padhkar bahut khushi hui...saath hi apney NCC camp ke din bhi yaad aaye...yun hi nek dil rahiye sadaa..shubhkaamnayen

वर्षा ने कहा…

शायद बहुत सी लड़कियों को ऐसी प्रेरणा की जरूरत है,बाकी काम वो खुद कर लेंगी।
एक डीएसपी का ब्लॉग और लेखनी दोनों देखकर बहुत अच्छा लगा। और हां ताकत का संबंध शरीर से ज्यादा दिमाग़ से है,यही बात सबको समझने की जरूरत है।

Manish Kumar ने कहा…

बेहद प्रेरणादायक आलेख..खुशी हुई आप जैसे व्यक्तित्व के बारे में जानकर। आप ने जिन मूल्यों को अपनी नौकरी में समाहित करने की कोशिश की है वो अनुकरणीय है। आशा है आप सफलता की सीढ़ीयों पर भविष्य में भी चढ़ती रहेंगी।

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छा लगा संस्मरण लेख पढ़कर। सिस्टम की तमाम झंझटें झेलते हुये अच्छाईयां बनाये रखने के लिये शुभकामनायें।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत अच्छा संस्मरण ! हमेशा की तरह लाजवाब !
शुभकामनाए !

Anita kumar ने कहा…

पल्लवी आप के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा

meeta ने कहा…

mere do dost hai jisme se ek abhi army aur ek navy mein training le rahe hai.... unse aksar unki training ke baare mein baate hoti hai..... sunkar raunate khade ho jaate hai kabhi kabhi ... aapka lekh padhkar wapas ek baar vahi mehusus hota hai...

श्रद्धा जैन ने कहा…

aapko padh kar saans ruk gayi gurv hua aankhon main chmak bhar gayi
waqayi kuch aisi hi hoti hai ek stri jo thaan le bus karna hota hai
bhaut bhaut badhayi

betuki@bloger.com ने कहा…

इस प्रेरणा की बहुत लोगों को जरूरत है। आपका लेख पढ़ने के बाद निश्चित लड़कियों की हिम्मत बढ़ेगी।

Manoj Pamar ने कहा…

शायद वो तुम ही थी..कनार्टक एक्सप्रेस में एसी थ्री टायर में बिना रिजर्वेशन साधारण टिकट लेकर बैठना और फिर बिना किसी परिचय के ग्वालियर का टिकट बनवाकर चैन की नींद सो जाना। आपकी जगह कोई और पुलिस अफसर रहा होता, तो वह पहले मातहतों के सहारे खाकी वर्दी का रौब और फिर बिना टिकट सफर करता। सामाजिक जीवन में यही ईमानदारी और सुचिता निःसंदेह आपको आगे, और आगे लेकर जाएगी। आपके विचार पढ़कर अच्छा लगा। आपको बहुत बहुत बधाई..।

samagam rangmandal ने कहा…

पल्लवीजी,पता नहीं कैसे आज इस लेख तक पहुँचा,मेरे पापा भी प्रशासनिक सेवा में थे,लगभग आपकी तरह ईमानदार। अभी कुछ दिनो सें सपनो,पैसे के अंधे दोस्तो ने इमानदारी के पागलपन पर सवाल उठाए। आपका लेख पढा,पापा की याद आ गई,भावुक भी हुआ और पहले से ज्यादा मजबूत।
आपको प्रणाम। खूब सारी बधाई। ईश्वर आपको और ताकत दे।

samagam rangmandal ने कहा…

पल्लवीजी,पता नहीं कैसे आज इस लेख तक पहुँचा,मेरे पापा भी प्रशासनिक सेवा में थे,लगभग आपकी तरह ईमानदार। अभी कुछ दिनो सें सपनो,पैसे के अंधे दोस्तो ने इमानदारी के पागलपन पर सवाल उठाए। आपका लेख पढा,पापा की याद आ गई,भावुक भी हुआ और पहले से ज्यादा मजबूत।
आपको प्रणाम। खूब सारी बधाई। ईश्वर आपको और ताकत दे।

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

करीब २५ टिप्पणियों के बाद ही मेरा नंबर आ पाता है और बहुत अच्छा लगता है यह देखकर !आपके अनुभव ,सोच और सूक्ष्म अवलोकन का कायल हूँ मैं !बहुत अच्छा ,अच्छे तरीके से लिखा है आपने !

PD ने कहा…

आपका लेख आज पढा.. कुछ बातें याद हो आयी..
मेरे पिताजी उच्च प्रशासनिक अधिकारी हैं और उन्होंने बचपन से ही हम बच्चों को दो बातें कही हैं..
1.ईमानदारी का साथ कभी ना छोड़ना..
2.व्यक्ति कि पहचान इससे नहीं होती है कि वो अपने से बड़े के साथ कैसा व्यवहार करता है.. बल्की इससे होता है कि वो अपने से छोटे के साथ कैसा व्यवहार करता है..
बाद में भैया भी वरीष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हुये.. जब वो ज्वाईन करने जा रहे थे तब पापाजी ने उनसे वचन लिया था कि ईमानदारी का साथ कभी ना छोड़ना.. उस वचन को निभाने के लिये भैया को शुरू में बहुत कष्ट भी हुआ.. मगर बाद में उन्हें उसकी आदत भी पर गई.. :)

मुझे अभी भी याद है कि जहां कहीं से पापाजी का तबादला होता था वहां के लोग उस जिला की सीमा तक पैदल ही पापाजी को छोड़ने आते थे और वैसा माहौल उस जिला के लिये पहली बार होता था..

आपको भविष्य के लिये ढ़ेरों शुभकामनाऐं..

. . ने कहा…

पल्लवी जी, लेख के लिए साधुवाद।

IPS सरीखी परीक्षा में सफल होना एवं उसके बाद हवा में ना उड़ते हुए, धरातल से जुड़े रहना, हरी कृपा से ही सम्भव है।

प्रभु विमल बुद्धि बनाये रखें, यही प्रार्थना है।

अन्य कहीं एक "व्यंग" का प्रयास किया है - आस्तिक एवं नास्तिक के शास्त्रार्थ में जिसमे पंडित जी नहीं हारते, अपितु, मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम एवं उनके आचरण का उपहास किया गया है।

आपकी बुद्धि का दोष हो सकता की ब्राह्मिण कुल में जन्म लेकर भी आप में प्रभु के प्रति श्रद्धा भावः विकसित नहीं हुआ। आप अपने निजी जीवन में क्या करें, यह आपका चुनाव है, किंतु आपको अन्य लोगों की धार्मिक भावनायों को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है।

आप जिस पद पर हैं, लेख उसकी मर्यादा के अनुरूप नहीं है.

भरत

sunil ने कहा…

aapka lekh bahut achha laga, aapke anubhav sabhi ke liye prerna satrot sabit ho sakte hai. asha karta hoon aap aage bhi isi tarha apne anubhav likhti rahengi, dhanyavad.

Aman ने कहा…

paalvi jee aapka bhavnatmak aur savedansheel abhivyktee bahut sare logo ka prena ka srot banega. aapka sahas wakai kabiletarif hai aur salamkarne layak hai....

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

Pallavi ji,NESBI is a new wave blog so I must congratulate you.
Second thing regarding your experiences,you are talking about social policing which is in practice in western countries.
They are not GODS but nobody feels threatened if called by police aqnd if police visits a home its not a concern for landlord.
You have raised a very important point of corruption.I believe if a policeman got an appointment after bribing lakhs he will try his best to retrieve that sum at earliest.
If boss is corrupt lower ranker is bound,compelled,forced to follow.
Whole police mannual is based on English pattern of Ruling races vs ruled races,it declares some tribes as criminal tribes ,and crushes them ,paves the way for power to power and desides that poor are the criminals,whatever the reality maybe.
Officer like you are a feather in the crown of police with manymore to mention.
The ultimate reason for downfall is improper ,high tech training,efficient weaponary and armaments and very low insufficient public police ratio.If you will not provide petrol for petrolling ,one will has to manage through other means and thus corruption starts.
I often lament by watching american policeon discovery channel how well equipped,armed with required weapons and instruments they are.wellequipped their forensic team is and well trained they are.They wait for special squad to take charge,dont take undue risk ,operate like true professionals with sensitive contact system. Your classical articles forced me to say what I feel about our policing system
With warm regards
dr.bhoopendra,

rajiv ने कहा…

हां, पुलिस महकमें में ढेर सारे आलसी, भ्रष्ट और तोंदियल हैं लेकिन सब नहीं......http://www.rajubindas.blogspot.com/

RAJANIKANT MISHRA ने कहा…

hello pallvi.
good to see the honest comments.
ould like to know taza haal.
how do you think now
its painful to be in government.
keep in touch
ragards
rajanikant mishra
mishra.rajanikant@gmail.com
09650183983

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

पल्लवी जी ना जाने कैसे आज aapke लेख तक पहुच गयी ......... सौभाग्य है मेरा , आपके विचार ने काफी सुकून दिए माँ को .क्योंकि आचरण की शुधि ही जो एक इन्सान को इन्सान बनाता है ,जिसके आचरण में मैल भर जाये वो कितने भी ऊंचाई को हासिल कर ले पर अपने अंतर्मन की ओर जब झांकता है तो खुद को गुनाहगार ही पाता है , आपके इस संदेश से ना जाने कितने लोगों को प्रेरणा मिलेगी, कितनो के हौसले बुलंद होंगे ,आपको मेरी शुभकामनाएं अपने मेरा नेक विचारो से अपना और अपने देश का सर उंचा बनाना.
http://rajninayyarmalhotra.blogspot.com/

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

पल्लवी जी ना जाने कैसे आज aapke लेख तक पहुच गयी ......... सौभाग्य है मेरा , आपके विचार ने काफी सुकून दिए man को .क्योंकि आचरण की शुधि ही जो एक इन्सान को इन्सान बनाता है ,जिसके आचरण में मैल भर जाये वो कितने भी ऊंचाई को हासिल कर ले पर अपने अंतर्मन की ओर जब झांकता है तो खुद को गुनाहगार ही पाता है , आपके इस संदेश से ना जाने कितने लोगों को प्रेरणा मिलेगी, कितनो के हौसले बुलंद होंगे ,आपको मेरी शुभकामनाएं अपने मेरा नेक विचारो से अपना और अपने देश का सर उंचा बनाना.
http://rajninayyarmalhotra.blogspot.com/

नदीम अख़्तर ने कहा…

99 फीसद पुलिसकर्मियों में दमनकारी इच्छा इसलिए पनपती है, क्योंकि वे पहले से ही किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार हुए रहते हैं। जो लोग संवेदशील होते हैं, वैसे इक्का-दुक्का लोग पुलिस में खोजने से मिल जायेंगे। लेकिन, पुलिस विभाग के पूरे स्वरूप पर ही गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। सरकार ने इस एजेंसी को स्वच्छंद तो बना दिया है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए किसी नोडल एजेंसी को प्राधिकृत नहीं किया है। यही वजह है कि डकैतों से ज्यादा भय पुलिसकर्मियों को देखने से लगने लगता है।

Prakash ने कहा…

aapke article ki link neeraj ke comment se mili....
bahut accha aur inspirable hai aapki writing...

aise hi likhte raha kijiye...

 

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