शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

मेरी नेस्बी



मेरी नेस्बी
अस्थमा की रोगिणी, नाम था मधुरा ...उनके जीवन मे ये नाम कहाँ तक सार्थक था आज तक नही समझ पायी मै । सर्दियों मे जब कोहरा गिरता… वे घुटनों तक जुराबें और माथे तक स्कार्फ़ बांध कर गुड़िया सी बन जाती । सफ़ेद कोरी साड़ी
और उतने ही सफ़ेद बाल,मेरे स्मृति पटल पर यही चित्र अंकित है उनका। उनके अतीत में झांकना हमें सबसे प्रिय था … उनके पिता चौ हरदयाल सिंह व महाकवि निराला सखा भाव से रहते… कैसे निराला जी उन्हे राम की शक्ति पूजा सुनाते… ऐसा ही कितना कुछ हम उनसे बार बार सुनते और मन कभी न अघाता हमारा । महादेवी वर्मा की प्रिय शिष्या ,जब इलाहाबाद युनिवर्सिटी से M.A की डिग्री लेकर निकली तो ब्याह दीं गयीं एक ऐसे ज़मींदार परिवार में जहां 500 व्यक्तियों की रसोई एक साथ पकती… हमें हँस हँस कर बताती … कि बिटिया जब नज़र का चश्मा लगा कर बाथरूम गये तो किसी बड़ी बूढ़ी ने ये कहकर चश्मा खेएंच लिया की पैखाने मे किसे फ़ैशन दिखाना है ?
वैवाहिक जीवन दो बेटियाँ और एक बेटा देकर मात्र 29 वर्ष की आयु मे चिर वैधव्य सौपं कर मुख मोड़ गया था,उसके बाद भी सबके प्रति उनके प्यार और दुलार में कभी कृपणता नही अनुभव हुयी । जब हम गर्मियों मे उनके पास जाते तो कहती …… बच्चों खाना ना खाओ ,आम खाओ खाना तो साल भर खाते हो । शेक्सपीयर से लेकर बिहारी तक पढ़ाने वाली मेरी नानी की पनीली आँखे आज भी मेरा मन भिगो जाती हैं ।
उनके व्यक्तित्व का प्रत्येक पहलू लुभावना था। बचपन मे मिला उनका प्यार हमारे युवा होते ही कैसे अनुशासन मे बदल गया …पता ही नही चला। जीवन भर उन्हे धुएँ और ठंडक से परहेज करते देखा था। तीन वर्ष पहले जब मै मायके गई तो शाम होते ही ननिहाल से बुलावा आया …… तीन-चार महीनों के घोर कष्ट के बाद उनकी तपस्या,उनका संघर्ष और उनका एकाकीपन उन्हे उसी अगरबत्ती के धुएँ और बर्फ़ की शीतलता का एकांतवास सौंप कर विलीन हो गया था ,और वहीं बैठे बैठे मै सोचती रही की ये "जी" गयीं या…………… दो पंक्तियाँ किसी की दिमाग में कौधनें लगीं……………धुआँ बना के हवा मे उड़ा दिया मुझको ……… …मै जल रहा रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको।

उनका ये संस्मरण बहुत पहले मै अपने ब्लाग पर पोस्ट कर चुकी हूँ

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

उसकी शादी

मीता सोनी,
बड़ौदा, गुजरात

मैं पेशे से एक इंटीरियर डिज़ाइनर हू, रंगो के साथ खेलना सुकून देता है.. अपना घर बनाना सबका सपना होता है.. खुशी होती है जब दूसरो के सपनो में रंग भरती हू.. नेस्बी भी ज़िंदगी के रंगो से सज़ा एक अनूठा ब्लॉग है इसमे एक रंग मेरा भी.. अच्छा लगा या बुरा बताएगा ज़रूर..

बी.

कॉम का लास्ट ईयर…. कॉलेज में हम लड़कियो का एक ग्रूप हुआ करता था….जो कॉलेज के पहले साल से साथ रहता था….लोग आते और चले जाते पर हम कुछ लड़कियो ने ग्रूप को बनाए रखा था…उसमे एक फ्रेंड थी मेरी… उ. प. के किसी शहर से थे वो लोग.. उस्के पापा बिजनसमैन थे और उनकी फैक्ट्री हुआ करती थी बड़ौदा में. … सीधे सादे लोग थे….
थर्ड ईयर के शुरू होते ही उसके पापा ने उसके लिए लड़के देखना शुरू कर दिया…. और बहुत ही जल्द अहमदाबाद के उन्ही की कास्ट के एक लड़के से उसकी सगाई कर दी…. लड़का अहमदाबाद की किसी कॉलेज में लेक्चरर था… जब से सगाई हुई मेरी फ्रेंड थोड़ी सी और रिज़र्व रहने लगी …और हम बाकी की सारी दोस्त , जैसे की होता रहता है, उसकी खिंचाई करने का मज़ा लेने लगी…ग्रूप की पहली लड़की की सगाई हुई थी तो हम सब खुश थी….मेरी दोस्त मुझसे कुछ ज़्यादा करीब थी…हम अच्छा ख़ासा एक दूसरे के बारे में जानते थे…थोड़े दिनों बाद हमारे ग्रूप में शादी की बातो को लेकर डिस्कशन हुआ….पता चला..कि उ.प. की होने के कारण उन लोगो में दहेज का बहुत ज़्यादा रिवाज है…। पूरा घर बसाकर देने के बावजूद कई बार लड़कियो को काफ़ी दिक्कत होती है शादी के बाद और इस बात से वो डर रही थी…॥ उसने मुझे काफ़ी कुछ डीटेल में बताया की कैसे शादी के फेरो के वक्त भी परेशानिया हो सकती है….

जबकि हमारे गुजरात में कुछ कास्ट को छोड़कर दहेज का कोई खास रिवाज नही…..लड़के वाले कई बार कहे देते है..कि आपको अपनी बेटी को जो देना हो वो दे दो…..हमारी और से कोई माँग नही है… मेरे लिए उस वक्त ये समझ पाना काफ़ी मुश्किल था……मैंने कह दिया की अगर तुम्हारी शादी में, मैं हुई और ऐसा कुछ हुआ तो मैं सीधा पुलिस को फोन कर दूँगी….चाहे जो हो जाए…. मैं ये सब नही चला सकती … और वो भी मेरी अपनी दोस्त के साथ…. मेरी सहेली वैसे ही थोड़ी चूज़ी थी….. ज़्यादा दोस्त नही थे उसके…हा .... स्टडी में काफ़ी अच्छी थी….हर साल फर्स्ट क्लास आया था उसका … और उसे आगे पढ़ने का भी बड़ा मन था….सगाई होने पर उसे अहसास हुआ की अब काफ़ी कुछ उसकी मर्ज़ी से नही होगा….जिसमे सबसे पहले पढ़ाई का बलिदान था….लोगो से जल्दी मिक्स नही होने वाले नेचर की वजह से वो अपने मंगेतर से बात करने से भी कतराती थी…और उसका मंगेतर उससे बात करने के लिए बेताब था…..उस वक्त मोबाइल तो थे नही की डाइरेक्ट बात हो सके…जमाना लॅंडलाइन फोन का था या फिर खत का…..ईमेल भी तो नही थे….. शहर अलग होने के कारण वो बार बार मिलने की भी नही सोच पा रहा था… सगाई के बाद उनका फोन पर बाते करने का सिलसिला शुरू हुआ…. थोड़े दिनों बाद मुझे मेरी फ्रेंड ने बताया की वो बात नही कर पा रही….उसे समझ नही आता था की क्या बात करे….सगाई के दिन मिलने के बाद वो फिर से मिले भी नही थे और सगाई के दिन तो सिर्फ़ रस्मे हुई थी…वो उस लड़के के बारे में ज़यादा जानती नही थी …और उसका खुद का नेचर भी ऐसा था की बात नही कर पा रही थी …. उसे डर लग रहा था… तो फोन को टालती रहती थी…. एक दिन उसने मुझे पूछा की वो क्या करे…..मुझे तो खत लिखने की बीमारी थी उस वक्त…. मैने सुझाव दिया की अगर वो बात नही कर पा रही तो कुछ दिन खत से कम चलाए…. उसने अपने मंगेतर को ये सुझाव सुनाया….वो फॉर्चुनेट्ली राज़ी हो गया … और उसने ही खुद शुरुआत की….जिस दिन पहला खत आया वो खुश हो गयी….लेकर मेरे पास आई…और मुझसे पढ़वाया.. फिर कहा अब इसका जवाब दो… मैं हेरान हो गई….मैने कहा मैं कैसे लिखू? काफ़ी अनबन के बाद हम दोनो ने मिलके उस खत का जवाब दिया…..फिर उन दोनो का खतो का सिलसिला शुरू हुआ…वो खुश थी….जब भी खत आता वो मेरे पास आती और हम मिलके उस खत का जवाब लिखते…. फिर एक बार उसने मेरे बारे में अपने मंगेतर को बताया…की मैने ये सुझाव दिया और अब भी वो मुझसे खत लिखने में हेल्प लेती है…उसके मंगेतर ने दूसरे खत के साथ एक खत मेरे नाम का भेजा … अलग से …. उसके बाद कई बार ऐसा हुआ ... उसे समझाने की कई बाते मुझे लिखता और मैं उसे समझा देती... हम सब एक दूसरे के बारे में अच्छे से जान ने लगे थे….और वो अब फोन पर भी आराम से बात कर पाती थी….सगाई को करीब 4-5 महीने हो गये थे…और मेरी सहेली खुश थी अब…. फिर एक दिन उसके मंगेतर ने मिलने के बारे में कहा…वो भी घरवालो से छुपकर…क्यूकी उनके यहा शादी से पहले मिलना जायज़ नही माना जाता था…. मिलने की बात पर मेरी सहेली परेशान हो गई…उसने कहा की वो तो नही मिलेगी…..उसके बाद डाइरेक्ट लेटर मुझ पर आया उसे समझने को….. मैने थोड़ा भाव खाया और मेरी सहेली को मना लिया….वो डर रही थी की किसी दिन उसके घर वालो को पता चल गया तो प्राब्लम हो जाएगी…मैने कहा हम सब तुम्हारी दोस्त है …हम सब के साथ ही तुम उसे मिलोगी …..फिर क्या प्राब्लम है….और जाके कौन कहने वाला है तुम्हारे घर पर ?……कॉलेज के गार्डेन में ही एक दिन मिलने का प्लान बनाया….उसके मंगेतर ने कहा था की उसे अकेले नही मिलना….अगर हम सब भी साथ हो तो उसे कोई प्राब्लम नही था….तो पूरा ग्रूप इस थ्रिलिंग टाइम को एंजाय करने का सोच रहा था….

उस वक्त तक उस लड़के ने हम पर एक अच्छी इंप्रेशन बना ली थी….बातो से वो मेच्योर लग रहा था….और काफ़ी फॉर्वर्ड भी … उसके कुछ दोस्त के साथ वो मेरी फ़्रेंड से मिलने आया .. सब साथ में मिले….देखने में ठीकठाक था….पर मेरी सहेली के लिए ठीक था….उससे मिलके मुझे लगा की उसकी शादी में कोई प्राब्लम नही होगी….शादी के बाद वो खुश रखेगा उसे……तो हम सब खुश थे…फिर धीरे धीरे खत कम होते गये और उसके बाद वो लोग फोन पर आरामसे बाते करने लगे……

साल ख़तम होने पर था….दिसम्बर या जन्वरी में उसकी शादी पक्की हुई…..तारीख आ गई…..उसने हम फ्रेंड्स को बोल दिया था की 2 दिन हमे उसके घर पर ही रुकना है….उसका घर मेरे घर से काफ़ी दूर था…और आने जाने में काफ़ी वक्त चला जाए ऐसा था … तो हम ने भी वही ठीक समझा….


शादी के अगले दिन हम उसके घर पर शिफ्ट हो गये …. सारी सहेलिया….पहली शादी थी तो सब मस्ती के मूड में थेउसके पापा ने हमे हमारे जीजाजी को संभलने की सूचना दे दी थी….घर पर उसने हमें उसे दी जाने वाली हर एक चीज़ दिखाईकपड़ेगहने तक तो बात ठीक थी….मुझे आश्चर्य हुआ जब मैने पीतल के बर्तनो से भरा पूरा कपबोर्ड देखाजो हम कभी इस्तेमाल भी नही करते थे….मैने मेरी सहेली से पूछा….ये क्यू? उसने कहा ..बसदेना पड़ता हैरिवाज है…..जो बर्तन तो वो कभी इस्तेमाल करने वाले भी नही थे…..फिर भीफिर उसने बताया की अभी टीवी, फ्रीज़, कपबोर्ड और फर्निचर भी आएगा और सजाया जाएगा…..मैने कहा क्यू? …उसने कहा दहेज मेंमैने कहा की तुम्हारे पापा अपनी मर्ज़ी से दे रहे है या उन्होने माँगा है….उसकी मम्मी वही पर थी…..वो मेरे सामने देखने लगीमेरी सहेली ने कोई जवाब नही दिया…..पर मुझे बहुत बुरा लगाउसकी मम्मी के जाते ही मेरी सहेली ने कहा मीताप्लीज़ …. ये शादी होने देना….तुम कुछ मत करना.. हम सब सहेलिया एकदम चुप हो गईमैने उसे कहाकी तुमने अपने मंगेतर से कोई बात नही की…..या उसने कोई विरोध नही किया? ….. वो चुप हो गई…..

सारी सहेलियो ने अब मुझसे कहा….मीताउनके रिवाजो से इतने से काम हो रहा है तो होने दोअगर वो खुद ही कुछ नही बोल रही तो……मैं अपनी सहेली को जानती थी….बडौदा मैं पली बड़ी होने के कारण उसे खुद की इस रिवाज से परहेज था….वो खुद भी चाहती थी की ऐसा कुछ ना होमुझे आश्चर्य हुआ की क्या उसने अपने इस विचार के बारे में लड़के से कोई बात नही की?

शायद की होगी ..क्या पताशादी का समय रात का था….फेरो का समय था 12 बजे के बाद कामुझे रात को जागने की कभी आदत नही थी….पर फिर भी जाग रहे थेशादी शुरू हुई….. शुरू होते ही हमने लास्ट टाइम सबको चाय कॉफी पिलाईऔर आराम से बैठे…..शादी मेरी सहेली के घर की छत पर ही थी…..उसका कमरा बीचवाले फ्लोर पर था…..सारे मेहमान चले गये थेबस घर के कुछ लोग..हम लड़किया और बाराती जाग रहे थे….. पंडित मंत्र बोल रहा था और नींद के कारण मुझे कुछ सुनाई नही दे रहा था….उसकी मम्मी ने आकर हमसे कहा की अगर हम सोना चाहे तो हमारी सहेली के कमरे में जाके सो सकते है….हम लोग थक भी गये थे तो सब नीचे आए….फेरे शुरू होने में थोड़ी देर थी….नीचे उसके कमरे में हम लड़कियो ने थोड़ी देर तो बाते कीफिर एक के बाद एक सोने लगी…..


इतने में अचानक उपर से ज़ोर से आवाज़ आई …..किसी के रोने की…..हम एकदम से सब जाग गये…. मैं सो रही थी तो फाटक से खड़ी हो गई…..मेरी सहेली की मॅमी के रोने की आवाज़ थीहम सब उपर भागे.... जो देखा वहा वो उससे पहले सिर्फ़ हिन्दी मूवीस में देखा थामेरी सहेली का दूल्हा तमाशा देख रहा था….और सहेली सहम के खड़ी थि..उसकी मॅमी रो रही थीकुछ लोग उन्हे संभालनेकी कोशिश कर रहे थेऔर उसके पापा हाथ में पगड़ी लिए गिड़गिडा रहे थे….3 फेरे हो चुके थेऔर चौथे फेरे को पूरा करने से पहले लड़के के बाप ने 2 लाख कैश माँगा था….कह रहा था की अभी दो तो फेरे होंगे वरना नही होंगे….मेरी सहेली के पापा के पास उस वक्त कुछ नही थाउसने और सब लोगो ने मिलके समझाया…..मुझे जैसे ही ये पता चला की वहा दहेज माँगा जा रहा है…. बहुत गुस्सा आया…. सब लड़किया ….बिल्कुल सुन्न होके खड़ी थी…..मैने मेरी सहेली की और देखा….और सीधे नीचे की और चलने लगी….नीचे जाके मैने सबसे पहले जो लोग नीचे सो रहे थे उनको फोन के बारे में पूछा….किसी को पता चला की मैं फोन ढूँढ रही हूतो मेरी सहेली के किसी रिश्तेदार ने जाके उपर उसकी मॅमी को बताया….दो दिन से उसी घर में रहने के कारणउसके करीबी रिश्तेदार जान गये थे ..की हम उसकी सहेलिया है….तो उसकी चाची नीचे आई…..हम सब लड़कियो को एक कमरे में इक्कठा किया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया……बाकी सब लड़कियो को हिदायत देके गई की मीता को बाहर मत आने देना……

आंटी अभी भी रो रही थी.. और मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा था…. पूरी रात कुछ नही कर सकी मैं….उस दिन अपने आपको पहली बार इतना लाचार पाया….काश उस रात मेरे पास मोबाइल होता….सब लड़किया सिसक रही थी….गुस्से के कारण मेरे मुँह से शब्द भी नही निकल रहे थे


उपर सुबह पैसे देने का वादा करके फेरे ख़तम हुए….सुबह हमे कमरे से निकाला गयाबिदाई से पहले मेरी सहेली दुल्हन बन के बैठी थी…. सब मिली….मैं उसके सामने गई..उसे देखा….वो नज़रे नही मिला पाई….मुझे गुस्सा आया….उसका दूल्हा कही और बैठा था…….. बाराती वापस जा रहे थे….जाते जाते उसका दूल्हा मुझसे मिलने आया…. मैने उससे कहा की आपसे ऐसी उम्मीद नही थी…..वो कुछ नही बोलाऐसा लगा की कोई अजनबी खड़ा था वहा….

मैने सोचा था….कॉलेज में लेक्चरर था तो कम से कम वो ये नही होने देगा ….. इतना समझदार तो होगा….की कोई कूरीवाज को हटाने के लिए सबसे पहले हम नौजवानो को ही पहल करनी पड़ेगी…. अगर लड़की के मा बाप अपनी बेटी को कुछ दे सकते है और देना चाहते है तब तक बात ठीक है…. पर ये कैसा रिवाज है की फेरो के वक्त पर किसी की इज़्ज़त ऐसे उछाली जाए….

आप में से कई सारे लोगो ने तो ये हर साल देखा होगा…..आज भी सुना है कई जगहो पर ये दोहराया जाता है…. मुझे आज तक समझ में नही आयाकी ये कौनसी प्रथा है जहा पर इंसान को बिकने के लिए कोई शर्म नही होती….उपर से वो सर उठाके कहता है की दहेज में इतने माँगे…..आज जितना लड़के पढ़ते है उतना ही लड़किया पढ़ती है….दहेज लड़की के घर वाले देते है तो फिर क्यू लड़के शादी के बाद लड़की के घरवालो को इतना नही संभालते जितना लड़की अपने ससुराल वालो को संभालती है…. अफ़सोस हैगुस्सा है….और नफ़रत भी…..अपने दोस्तो से उम्मीद रखती हू ….की कम से कम वो लोग अपनी शादी में ऐसी कोई हरकत होने से बचाए….
 

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