गुरुवार, 13 नवंबर 2008

स्त्रियोचित???

उन्नति शर्मा,
इंदौर, . प्र.

उन्नति जी इंदौर में फ्रॅंकफिन इन्स्टिट्यूट में पर्सनेलिटी डेवेलपमेंट की ट्रेनर है, साथ ही इंदौर थियेटर से भी जुड़ी है, हाल ही में उनके दो नाटको का मंचन हुआ है, दोनों ही नाटकों मे तलाक़शुदा स्त्रियों के मनोवैज्ञानिक उतार चढ़ाव को दर्शाया गया है.

जहाँ नाटक 'धूप का एक टुकड़ा' में एक तलाक़शुदा महिला अतीत के सुखमय क्षणों के सहारे अपना वर्तमान जीवन जी रही है, वही नाटक 'नींद क्यों रात भर नही आती' में एक तलाक़शुदा महिला, जीवन के कड़ुवे यथार्थ से क्षुब्ध हो आत्महत्या कर गुज़रती है..

नेस्बी के लिए उन्नति जी की ये पहली पोस्ट है.. उनके नियमित लेखन के लिए हमारी और से शुभकामनाए























स्त्रियोचित???

स्त्रियोचित???

मैं आज कुछ सोच रही थी...

क्या????

वही घिसा पिटा स्त्रियोचित ठहराव ...

वही रिश्तों का चक्रवियुह...

वही प्रेम की पहेली...

वही सपनो का मंच...

खैर... बताती हू...

क्या ऐसा नही लगता की...

अविश्वास के अंधकार

मेँ और असंतोष के बीहड़ मे सारे रिश्ते ही गुम है... आजकल???

और रिश्ते गुम भी हो सकते है,जो वासना के धरातल पर बने हो...

क्यों.. है ना?

नही ये ज़रूरी नही...

मुझे ऐसा लगता है...प्रेम??? प्रेम मात्रा एक कल्पना है..

जो मैने संजोई थी...जैसे सब संजोते है अल्हड़पन में...

वैचारिक अपरिपक्वता में...

जो अक्सर ही मुझे ठेंगा दिखाते हुए...

आज तक मेरा उपहास उड़ा रही है...

और कई लोग है आज भी...

जो अपने सपनो की...मृत्यु शैय्या पर...

अपने जीवन की...सुहाग रात मना रहे है...

आज...नया युग...भावनाओ के उपर...

गणक... संगणक... का युग...प्रतियोगिता करता ...

आगे बढ़ता युग तभी आज भी...

वासना का सैलाब भरा हुआ है...

असंतोष का 'अन्नुअल पॅकेज'

अविश्वास के 'पर्क्स' से सज़ा है...

जिस से मिलता है अस्थिरता का 'प्रमोशन'...

और मैं ??? प्रतियोगिता से बाहर...दौड़ रही हू...

पीछे ...बचपन को ढूंढते...

वही पर हू अभी भी जहाँ सारी गणना...

उंगलियों पर हो जाती थी...सपनो मे आखें लग जाती थी...

माँ के आचल मे जीवन सिमट जाता था...

'डियो' के साथ हींग और धनिए से महक जाता था... .......

और तुम कहते हो 'वरी' करने की कोई बात नही...

मैं अभी भी पुरानी हूँ

रिश्तो को समाज के लिए निभाती ..हूँ

प्यार करती हू अपने प्यार से ...

पर उसे समझ नही पाती हूँ

आक्षेपों को सह कर बच्चो का बचपन बचाती हूँ

सब रिश्तों से नफ़रत कर के भी

प्यार जताती हूँ

और तुम पूछते हो अपने लिए

लिए अच्छा वक़्त गुज़ारती हो...तो क्या बुरा करती हो?

तुम कौन हो?

क्यू मुझे अच्छे वक़्त की गंदी आदत डाल रहे हो?

तुम कौन हो?

कब तक हो?

....उत्तर दो...

सिर्फ़ शब्दो का जाल नही..
 

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